ईद उल-अजहा का महत्व।
हर साल भारत मे यह त्योहार मनाया जाता है। बल्कि संसार के सभी दूसरे देश और जहां मुस्लिम निवास करते है यह त्योहार बहुत हर्ष-उल्लास से मनाया जाता है। मुस्लिम समुदाय मे यह पर्व हज़रत इब्राहिम की याद मैं मनाया जाता है। कुरान के अनुसार अल्लाह ने इब्राहिम ( जो उस सदी के पैगंबर थे ) से सबसे प्रिय वस्तु को कुर्बान करने को कहा था। जबसे यह प्रथा चली आ रही है।
ईद उल अज़हा के इस महीने मे अल्लाह को कुर्बानी से ज्यादा कोई दूसरा अमल महबूब नहीं है इसी लिए मुस्लिम समाज के लोग जानवरों की कुर्बानी देते है। बकरा, ऊँट, भेड़ आदि जानवरों को अल्लाह के लिए कुर्बान किया जाता है। और जानवरों का गोश्त गरीबों मे दान कर दिया जाता है।
ईद उल-फितर के बाद इस्लाम धर्म का यह दूसरा प्रमुख त्यौहार है ईद उल-फितर के दिन से लगभग 2 माह के बाद ईद उल-अजहा का माह शुरू हो जाता है। इस्लाम धर्म के अनुसार इस त्यौहार मे जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। ईद उल-अज़हा का चाँद जिस दिन दिखाई देता है उसके 10वें दिन यह पर्व मनाया जाता है इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य लोगों मे जनसेवा और अल्लाह की सेवा का भाव जगाना है।
ईद उल-अज़हा का त्यौहार कैसे मनाया जाता है?
इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार यह त्यौहार हर साल ईद उल-अज़हा के महीने मे मनाया जाता है ईद उल-अज़हा के 10वें दिन मुसलमान किसी जानवर जैसे बकरा, ऊँट, भेड़, पड़वा आदि की कुर्बानी देते है इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग पाक-साफ होकर नए कपडे़ पहनकर नमाज़ अदा करते है
नमाज़ अदा करने के बाद ही जानवरों की कुर्बानी की प्रक्रिया शुरू की जाती है। कुर्बानी मे अल्लाहू अकबर ( अल्लाह सबसे बड़ा है ) कहकर जानवरों को कुर्बान कर दिया जाता है। जानवरों के गोश्त के 1/3 भाग किए जाते है 1भाग स्वयं के लिए, 2भाग दोस्त और रिश्तेदार के लिए, 3भाग गरीबों के लिए, बाँट दिया जाता है।
कैसे शुरू हुई कुर्बानी देने की परंपरा?
कुरान के अनुसार, Eid ul-adha का त्यौहार पैगंबर हज़रत इब्राहिम द्वारा शुरू हुआ था जिन्हें अल्लाह का पैगंबर (नबी)माना जाता है इब्राहिम जिन्दगी भर दुनिया की भलाई के कार्यों मे लगें रहे, लेकिन उनका एक दुख था कि उनकी कोई संतान न थी।
संतान प्राप्ति की कामना के लिए उन्होंने अल्लाह की बहुत इबादत की जिससे उन्हें एक बेटा इस्माइल पैदा हुआ। एक रोज उन्हें सपना मे अल्लाह दिखे , जिन्होंने इब्राहिम से अपनी प्रिय वस्तु की कुर्बानी देने को कहा (यह अल्लाह का इम्तिहान था इब्राहिम से) अल्लाह के आदेश को मानते हुए हज़रत इब्राहिम ने अपने सभी प्रिय जानवरों को कुर्बान कर दिया लेकिन फिर अल्लाह सपने मे दिखाई दिये और प्रिय वस्तु को कुर्बान करने को कहा।
तब पैगंबर हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे को कुर्बान करने को सोचा और अपने प्रिय बेटे इस्माइल को सारी घटना सुनाई फिर हज़रत इस्माइल स्वयं को कुर्बान करने के लिए राज़ी हो गये और जमीन पर लेट गये। फिर हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी अपनी आँखो पर पट्टी बांध कर दे दी।
अल्लाह ने इब्राहिम का इम्तिहान लिया था जिसमें इब्राहिम सफल रहे । जब इब्राहिम की आँखें खुली तो उन्होंने देखा की उनका बेटा इस्माईल जीवित है और उसकी जगह वहाँ एक भेड़ की कुर्बानी हो गयीं थी।
माना जाता है कि तभी से ईद उल अज़हा मे जानवरों की कुर्बानी की प्रथा चली।।