Clock Tower Lucknow Uttar Pradesh
लखनऊ. वैसे तो पहले आप जैसी तहज़्ज़ीब के लिए फेमस नवाबों के शहर लखनऊ में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं, लेकिन घंटाघर कुछ ख़ास है। हुसैनाबाद घंटाघर इमामबाड़ा के ठीक सामने स्थित है। भारत के सबसे ऊंचे इस घंटाघर की उचाई 67 मीटर यानी 221 फीट है।
कब हुआ था घंटाघर का निर्माण
इस घंटाघर का निर्माण 1887 में करवाया गया था। इसे रास्केल पायने ने डिजायन किया था। यह टॉवर भारत में विक्टोरियन-गोथिक शैली की वास्तुकला का शानदार उदाहरण है। इसके निर्माण की शुरुआत नवाब नसीर-उद-दीन ने 1881 में की थी। अवध के पहले संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गर्वनर जॉर्ज काउपर के स्वागत में 1887 इसका निर्माण पूरा हुआ था। उन दिनों इस घंटाघर पर 1.74 लाख की लागत लगी थी। हैरत की बात यह है कि 221 फ़ीट की इस ईमारत में समर्थन के लिए कोई भी खम्बा शामिल नहीं है।
बंदूक धातु से हुआ था इसकी सुइयों का निर्माण
लंदन के बिग बेन के तर्ज इसका निर्माण किया गया था। कहा जाता है कि इस घंटाघर के पहिये बिग बेन से ज़्यादा बड़े है। साथ ही इस घंटाघर में लगी घड़ी की सुईयां बंदूक धातु की बनी हुई हैं। इसे लंदन के लुईगेट हिल से लाया गया था। चौदह फीट लंबा और डेढ़ इंच मोटा पेंडुलम, लंदन की वेस्टमिनस्टर क्लॉक की तुलना में बड़ा है। इसमें घंटे के आसपास फूलों की पंखुडियों के आकार पर बेल्स लगी हुई हैं, जो हर 1 घंटे बाद बजती है। घड़ी के स्पेयर पार्ट्स सदियों से वैसे ही हैं, जो ठेठ भारतीय कठोर मौसम की स्थिति का सामना करने की क्षमता रखते हैं।
थम गयी थी घड़ियों की टिक-टिक
हालांकि 1984 में इसकी घड़ियां रुक गयी थीं। दो लखनऊ वासियों इस नवाबी पहचान को दुरुस्त करने का ज़िम्मा अपने कंधे लिया। कप्तान पारितोष चौहान और मैकेनिकल इंजीनियर अखिलेश अग्रवाल द्वारा इन घड़ियों की टिक-टिकाहट वापस लायी गयी। उनका मानना था कि घंटाघर के पुराने गौरव को और भव्यता को कायम रखना ज़रूरी है। इस जोड़ी ने हुसैनाबाद ट्रस्ट से अनुमति प्राप्त की और समर्पण और कड़ी मेहनत के दो साल बाद, वह घंटाघर की घड़ियों को जीवन को नया पट्टा देने में कामयाब रहे।
इस घंटाघर ने समय के परीक्षण का सामना किया है। इसने कई विरासत और पीढ़ियां देखीं है। इस विरासत के संरक्षण की जिम्मेदारी अब आज के रहने वाले लोगों पर टिकी हुई हैं।