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कुत्ता काटने के बाद क्या करें
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शहादत गंज मुहल्ले के एक व्यक्ति को कुत्ते ने काटा था। समय पर इलाज नहीं कराया तो वह रैबीज का शिकार हो गया। अस्पताल में डाक्टरों ने बताया कि अब इसे कोई नहीं बचा सकता। मुहल्ले वाले उसे ले गये और अपने हाल पर छोड़ दिया। लखनऊ के चौपटिया का एक युवक अखबार में विज्ञापन प्रतिनिधि का कार्य करता था। उनके साथ भी ऐसी ही घटना हुई। रैबीज या हाइड्रोफोबिया के शिकार मरीजों को बेहद दर्दनाक मौत का सामना करना पड़ता है।
लिहाजा चिकित्सक कुत्ता काटने से पीड़ित मरीजों को रैबीज का टीका लगाने की सलाह देते हैं। लेकिन अररिया के अस्पतालों की विडंबना है कि अधिकांश अस्पतालों में रैबीज के टीके उपलब्ध नहीं होते और डज्ञग बाइट के मरीज इसके लिए या तो परेशान होते हैं अथवा झाड़ फूंक करने वालों का सहारा लेते हैं। जानकारों की मानें तो कई कुत्ते ऐसे होते हें, जिनके काटने से रैबीज डेवलप नहीं होता। इस वजह से लोग झाड़ फूंक से सही होने का दावा करने लगते हैं।
कुत्ता काटने के बाद क्या करें
-कुत्ते की सतत निगरानी करें
- कुत्ता मरा या नही देख लें
-कुत्ते की मौत इस बात का सबूत है कि उसके अंदर थे रैबीज के विषाणु
- पांच बार रैबीज का टीका लें
- काटने के दिन, तीसरे, पांचवे, सातंवे व नौंवे दिन
- टीका निर्धारित तिथि में ही लें
- काटने के बाद उस स्थल को डेटाल से धो दें
-कटे स्थान को छोटे बच्चे को न छूने दें
कुछ जिला में रेबीज के कारण लोगों के स्वास्थ्य को खतरा बना हुआ है। आवारा कुत्तों एवं बंदरों की बढ़ती संख्या ने इस खतरे को और बढ़ा दिया है। मगर अब तक कुत्तों एवं बंदरों को पकड़ने के लिए नगर परिषद या जिला प्रशासन की ओर से कोई विशेष प्रयास नहीं दिया जा रहा।
ज्ञात हो कि रेबीज के प्रति जागरूकता बढ़ाने, रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए वर्ष 2007 से लगातार प्रत्येक 28 सितंबर को विश्व रेबीज दिवस मनाया जा रहा है, लेकिन अब तक महेंद्रगढ़ का जिला प्रशासन एवं नागरिक इसके प्रति जागरूक नजर नहीं आए हैं। यही कारण है कि अब प्रशासन की ओर से इस दिवस पर कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाता। स्वास्थ्य विभाग भी आंख मूंदकर बैठा हुआ है, जबकि यह एक खतरनाक रोग है, जो अक्सर कुत्तों बंदरों, बिल्लियों एवं नेवले जैसे कई जानवरों के काटने से फैलता है। कुत्तों द्वारा काटे जाने पर गंभीर अवस्था में हर साल करीब बहुत से मरीज नागरिक अस्पताल पहुंच रहे हैं। मगर स्वास्थ्य विभाग ने इस बीमार पर अब लगभग काबू पा लिया है। इसी कारण अब रेबीज से रोगी की जान नहीं जाती।
कैसे फैलता है रेबीज :
रेबीज एक वॉयरस है, जो कुत्तों, बंदरों एवं अन्य कई जानवारों के काटने से फैलता है। जब जानवर की लार में सम्मिलित होता है तथा जब रेबीज युक्त जानवर किसी व्यक्ति या पशु को काटता है तो लार के जरिए ये वॉयरस व्यक्ति व पशु में फैल जाता है। इसके कारण वॉयरस की चपेट में आया व्यक्ति व जानवर पागल हो जाता है तथा इस कारण उसकी मौत तक हो जाती है।
अब नहीं लगते सूंडी में टीके :
पहले जब किसी व्यक्ति को कुत्ता या बंदर वगैरा काट लेता था तो व्यक्ति की सूंडी में 14 टीके लगाए लाते थे। ये टीके बड़े ही दर्दनाक सिद्ध होते थे। मगर अब उपचार का तरीका बदल गया है। अब सामान्य रोगी को एक-दो टीके ही लगते हैं, जबकि गंभीर रोगी का अधिकतम छह या सात टीकों में इलाज हो जाता है।
रोगी डरता है पानी से :
जब कोई पागल कुत्ता या बंदर किसी व्यक्ति को काट लेता है तो उस व्यक्ति के भी पागल होने का खतरा रहता है। समय पर इलाज नहीं लेने पर यह खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है। रेबीज वाला व्यक्ति पानी से डरने लगता है। लोगों में आम प्रचलित बात है कि रेबीज रोगी को पानी एवं आइने से दूर रखना चाहिए। अगर वह अपनी परछाई देखे तो उसके पागल होने की आशंका हो जाती है। पागल व्यक्ति के जीवन को बचा पाना बेहद कठिन हो जाता है।
गर्मियों में रहता है ज्यादा खतरा :
कुत्तों एवं बंदरों के लोगों एवं पशुओं का काटने की गर्मियों में ज्यादा आशंका रहती है। गर्मी के समय अक्सर कुत्ते पागल हो जाते हैं और बंदरों में भी ऐसा हो जाता है। मार्च-अप्रैल में इस साल नागरिक अस्पताल नारनौल में अनेक मामले आए। ग्राम पटीकरा एवं शोभापुर में एक पागल कुत्ते ने करीब एक दर्जन लोगों तथा कई पशुओं का काट खाया था। गहली एवं मकसूसपुर में भी आधा दर्जन लोगों को कुत्ते ने काट खाया था, जिन्हें नारनौल अस्पताल में उपचार दिया गया।
प्राइवेट अस्पतालों में भी है इलाज मौजूद :
रेबीज का टीका अब केवल सरकारी अस्पतालों में ही नहीं लगाया जाता, बल्कि प्राइवेट अस्पतालों में भी यह टीका लगाया जाने लगा है। इसका एक टीका करीब 300 रुपये में मेडिकल स्टोर पर आसानी से मिल जाता है। सरकारी अस्पताल में भी इसकी दवा मौजूद है तथा वहां पर सामान्य मरीजों से 100 रुपये प्रति टीका लिया जाता है, जबकि बीपीएल कैटेगरी के मरीजों के लिए यह टीका मुफ्त में उपलब्ध है।
''रेबीज अब खतरनाक बीमारी नहीं रही है। पिछले तीन-चार नहीं, अपितु छह-सात सालों में मैंने रेबीज के कारण किसी की मौत होना न देखा है और न ही सुना है। अस्पताल में इसका उपचार मौजूद है।